मेला
ऊँचे हलवाई झूले दुकान मिठाई
मेला है, भई मेला है, यह बच्चों का मेला है।
यहाँ सब मौज उड़ाते हैं, झूम-झूम कर गाते हैं।
मेले में ऊँचे झूले हैं। बच्चे खुशी में फूले हैं।
यहाँ सोहन हलवाई है, साथ में उसका भाई है।
ऊँची दुकान जमाई है, तरह-तरह की मिठाई है।।
यहाँ सब घूम रहे हैं, बच्चे मस्ती से झूम रहे हैं।
गाँव से मिल दौड़ लगाई है, सखियों संग गीता आई है।
उसने दूध-मलाई खाई है, सबकी खूब कमाई है।
मेला बच्चों की मस्ती है, बच्चों से इसकी हस्ती है।
सोहन हलवा एक ऐसी मिठाई है, जिसे एक-दो महीने तक भी रखा जाए तो खराब नहीं होता।
देशभर से अजमेर आने वाले जायरीन भी दरगाह पर जियारत के बाद अपने रिश्तेदारों और मित्रों के लिए सोहन हलवे का प्रसाद ले जाना नहीं भूलते। बताया जाता है कि सोहन हलवे का चलन बादशाह अकबर के जमाने से चला आ रहा है। कहा जाता है कि जब अकबर कोई लंबा सफर करते थे तो अपने और लश्कर के लिए इसी तरह की खाद्य सामग्री रखा करते थे, जो दो-तीन महीने तक खराब नहीं होती थी और सफर में खाने में काम आ जाया करती थी। इसीलिए जब कोई जायरीन लंबा सफर करके अजमेर आता है तो ख्वाजा साहब के तबर्रुक (आशीर्वाद) के तौर पर अपने वतन इस सोहन हलवे को ले जाता है।

सोहन हलवा एक ऐसी मिठाई है, जिसे एक-दो महीने तक भी रखा जाए तो खराब नहीं होता।
देशभर से अजमेर आने वाले जायरीन भी दरगाह पर जियारत के बाद अपने रिश्तेदारों और मित्रों के लिए सोहन हलवे का प्रसाद ले जाना नहीं भूलते। बताया जाता है कि सोहन हलवे का चलन बादशाह अकबर के जमाने से चला आ रहा है। कहा जाता है कि जब अकबर कोई लंबा सफर करते थे तो अपने और लश्कर के लिए इसी तरह की खाद्य सामग्री रखा करते थे, जो दो-तीन महीने तक खराब नहीं होती थी और सफर में खाने में काम आ जाया करती थी। इसीलिए जब कोई जायरीन लंबा सफर करके अजमेर आता है तो ख्वाजा साहब के तबर्रुक (आशीर्वाद) के तौर पर अपने वतन इस सोहन हलवे को ले जाता है।
